सफलता और संघर्ष: एक साथ चलने वाली प्रक्रिया

Sucess and struggle are a result of continous process

प्रायः ऐसा माना जाता है कि सफल होने के लिए हमें कड़ी मेहनत और संघर्ष करना पड़ता है, जो कि उचित भी है। हमारा समाज भी हमें यही सिखाता है कि यदि आप कठिन परिश्रम करें, तो सफल हो सकते हैं। इस सोच से आमतौर पर यह धारणा बनती है कि सफलता एक ऐसा पद या स्थिति है, जिसे प्राप्त करने के बाद यह गारंटी होती है कि आप सुखी या आनंदित रहेंगे, और आपके जीवन की सभी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी।

लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल भिन्न है। ध्यान से देखें तो – “सफलता कोई पड़ाव नहीं है और संघर्ष का कोई अंत नहीं होता। संघर्ष और सफलता जीवन में साथ-साथ निरंतर चलने वाली प्रक्रियाएं हैं।”

सफलता कोई ऐसा अंतिम स्थान नहीं है जो केवल लंबे संघर्ष के बाद प्राप्त होता है।
वास्तविक आनंद उस सफलता में होता है जो निरंतर संघर्ष के पश्चात मिलती है। दूसरी ओर, जो सफलता अचानक, रातों-रात मिल जाती है, उसे बनाए रखना या उसमें मिले आनंद को लंबे समय तक अनुभव करना कठिन होता है। ऐसी सफलताएं अक्सर क्षणिक बुलबुले की तरह होती हैं – जो कुछ ही देर में फट जाता है।

उदाहरण के तौर पर, हम सरकारी नौकरियों में होने वाली दौड़ को देखते हैं। आखिर उसमें मिली सफलता क्या है? हम जीवन भर मेहनत करते हैं, पढ़ाई करते हैं, किताबों के पन्ने पलटते हैं, कलम घिसते हैं – इस उम्मीद में कि एक दिन किसी सूची में हमारा नाम होगा और सब कुछ सुंदर हो जाएगा। लेकिन यह पूरी तरह से सच नहीं है।

इसके बाद लोग उस सफलता का जश्न मनाते हैं – ढोल नगाड़े बजते हैं, मीडिया इंटरव्यू लेती है, समाज बधाइयां देता है, मिठाई बांटी जाती है, फूल-मालाओं से स्वागत होता है। लेकिन यह उत्सव मुश्किल से 15–20 दिन चलता है। कुछ लोगों के लिए यह छह महीने या एक साल भी चल सकता है, लेकिन अंततः वे फिर से अपने दैनिक जीवन और नई चुनौतियों में लौट आते हैं।

कई बार जिस सफलता की उन्होंने कल्पना की होती है, उस तक पहुंचने के बाद भी उन्हें स्थायी सुख या आनंद महसूस नहीं होता। तो क्या उसे वास्तविक सफलता कहा जा सकता है?

दूसरी ओर, जब हम उन लोगों को देखते हैं जिन्होंने किसी लकी ड्रॉ, लॉटरी, या गेम शो में रातों-रात करोड़पति बन जाने जैसी सफलता पाई, तो यह जानना आवश्यक हो जाता है कि क्या वे लोग लंबे समय तक उस सफलता को कायम रख पाते हैं? या फिर कुछ वर्षों में उनकी स्थिति बदल जाती है?

मेरा मानना है कि सफलता निरंतर होती है और यह संघर्ष के साथ-साथ चलती है। संघर्ष और सफलता को अलग करके नहीं देखा जा सकता – ये एक-दूसरे की पूरक हैं।

मान लीजिए आप किसी ऊंचे पर्वत पर ट्रेक कर रहे हैं, जिसकी ऊँचाई समुद्रतल से 5000 मीटर है। जैसे-जैसे आप ऊँचाई पर चढ़ते हैं, हर एक कदम भारी लगने लगता है। ऑक्सीजन की कमी से साँस फूलने लगती है, पैर जकड़ जाते हैं, पेट में दर्द होता है, और शरीर थककर चूर हो जाता है। तेज़ धूप आँखों को चुभने लगती है। ऐसे में कुछ लोग बीच रास्ते से ही लौट जाते हैं, जबकि कुछ थोड़ी देर आराम करके फिर से चढ़ाई शुरू करते हैं।

इस पूरी प्रक्रिया में कई बार स्वयं की क्षमताओं पर संदेह होता है – क्या मैं कर पाऊँगा? क्या मेरा शरीर साथ देगा? क्या वहाँ तक जाना ज़रूरी है? आदि।

ध्यान से देखें तो इसमें संघर्ष और सफलता साथ-साथ चल रहे हैं। हर कदम में लगने वाला मानसिक और शारीरिक बल संघर्ष है, और उस कदम को पार करने के बाद मिलने वाली संतुष्टि और आत्मविश्वास ही सफलता है। संघर्ष के बिना सफलता निरर्थक है।

जो व्यक्ति इन सब मानसिक और शारीरिक स्थितियों के बावजूद पर्वत की चोटी तक पहुँचता है, उसे जो सुखद अनुभूति होती है, उसकी तुलना किसी भी अन्य अनुभव से नहीं की जा सकती। वह व्यक्ति आत्मविश्वास से भर जाता है। उसे इस बात का डर नहीं होता कि वह नीचे कैसे उतरेगा, क्योंकि उसने इस प्रक्रिया में चढ़ने और उतरने का कौशल विकसित कर लिया होता है।

इसके विपरीत, यदि आप उसी पर्वत की चोटी पर हेलीकॉप्टर से पहुँचते हैं, तो आपको वहाँ पहुँचने में केवल 5–10 मिनट लगेंगे। ऊपर पहुँचने पर दृश्य बेहद सुंदर होगा और आप उत्साह से भर जाएंगे। लेकिन कुछ ही समय में शरीर असहज महसूस करने लगेगा – ऑक्सीजन की कमी, सिरदर्द, और अचानक तापमान परिवर्तन से आप थका हुआ महसूस करने लगेंगे। आपको वहाँ से जल्दी ही वापस लौटना पड़ेगा, क्योंकि आपका शरीर उस वातावरण के अनुकूल नहीं हुआ है।

इसका तात्पर्य है कि जिस गति से आप ऊपर पहुंचे, उसी गति से आपको नीचे भी आना पड़ता है। आपका शरीर और मन वहाँ टिके रहने के लिए तैयार नहीं होता। यही कारण है कि आपको उस ऊँचाई से वापस लौटना ही पड़ता है।

जीवन में सफलता भी कुछ ऐसी ही होती है। जब हम संघर्ष करते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं, तब हर छोटी सफलता हमें आत्मसंतोष देती है और अंत में जो आनंद मिलता है, वह स्थायी और गहरा होता है। इसके विपरीत, जो सफलता एकाएक मिलती है, वह क्षणिक होती है और कुछ समय बाद बेचैनी पैदा करती है।

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