सफलता: कठिन परिश्रम का परिणाम या भ्रम


सफलता एक ऐसा विचार है जो न तो हर किसी के लिए एक जैसा होता है और न ही इसे किसी एक मानक से मापा जा सकता है। यह एक अमूर्त विचार है — जो अलग-अलग व्यक्तियों के लिए अलग-अलग अर्थ रखता है। कोई इसे धन अर्जित करने से जोड़ता है, तो कोई आत्मिक शांति या सामाजिक सम्मान पाने से। सफलता आर्थिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, राजनीतिक या मानसिक स्वास्थ्य की अच्छी स्थिति भी हो सकती है।

सफलता के कारक: सिर्फ मेहनत ही नहीं
अक्सर यह माना जाता है कि कठिन मेहनत और प्रतिभा से ही सफलता मिलती है। लेकिन वास्तविकता इससे कहीं आगे है। किसी व्यक्ति की सफलता उसके सामाजिक-आर्थिक हालात, उसके परिवेश, शिक्षा के स्तर, उपलब्ध अवसरों, सीमाओं और विशेषाधिकारों के सम्मिलित प्रभाव से बनती है।

समाज और परिस्थितियाँ: सफलता को कैसे प्रभावित करते हैं?
महाभारत के कर्ण और एकलव्य का उदाहरण स्पष्ट करता है कि केवल प्रतिभा पर्याप्त नहीं होती। कर्ण को क्षत्रिय न मानने पर तिरस्कार झेलना पड़ा, जबकि एकलव्य को अपना अंगूठा दान करना पड़ा। ये घटनाएँ बताती हैं कि सामाजिक स्थितियाँ भी प्रतिभा के मार्ग में बाधा बन सकती हैं।

इसी तरह, विकसित देशों ने नवाचार और तकनीक के लिए अनुकूल वातावरण तैयार किया है, जिससे उनके नागरिकों को अधिक अवसर मिलते हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका और चीन में स्टार्टअप को जो सहयोग मिलता है, वह भारत जैसे देशों में सीमित है। इसी कारण भारतीय प्रतिभाओं को अधिक संघर्ष करना पड़ता है।

ब्रेन ड्रेन: अवसरों की तलाश में पलायन
भारतीय मूल के लोगों की आईटी कंपनियों में बड़ी भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि जब माहौल अनुकूल हो तो प्रतिभा कैसे निखरती है। जब अपने देश में सुविधाएँ कम मिलती हैं, तो योग्य लोग विदेशों की ओर रुख करते हैं। इसे ही ब्रेन ड्रेन कहा जाता है और यह दर्शाता है कि सफलता अक्सर स्थान विशेष पर निर्भर करती है।

संसाधन और नीति का योगदान
यदि समाज, नीति और संसाधन सहायक हों तो कम परिश्रम में भी बड़ी उपलब्धि हासिल की जा सकती है। वहीं, विपरीत परिस्थितियों में अधिक मेहनत के बावजूद सफलता मिलना कठिन हो जाता है। उदाहरण के तौर पर, डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के वैज्ञानिक बनने में उनके शिक्षकों और मिशनरी स्कूल की भूमिका रही। इसी तरह, डॉ. बी. आर. आंबेडकर को सयाजीराव गायकवाड़ के आर्थिक सहयोग के बिना विदेश जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करना संभव नहीं हो पाता।

सहायक कारक और संयोग की भूमिका
जैसा कि कहा गया है, “कठिन परिश्रम के साथ अन्य सहायक कारकों को सुनिश्चित कर लेने पर हमारी जीवन यात्रा सरल हो जाती है।” लेकिन यह भी सत्य है कि कई बार ये सहायक कारक हमारे वश में नहीं होते और संयोगवश प्राप्त होते हैं। जिनके पास ये कारक होते हैं, उनके लिए सफलता अपेक्षाकृत आसान हो जाती है।

सफलता की व्यक्तिगत परिभाषा
हर व्यक्ति के लिए सफलता का अर्थ अलग होता है। हमें यह तय करना चाहिए कि हमारे लिए सफलता क्या है, न कि समाज द्वारा तय किए गए ढर्रे के अनुसार उसे अपनाना चाहिए। कई बार आर्थिक रूप से समृद्ध व्यक्ति मानसिक रूप से अकेला होता है, जबकि सीमित साधनों में जीवन जीने वाला व्यक्ति भी संतुष्टि और आनंद में रह सकता है। उदाहरण के लिए, एक सन्यासी आत्मिक संतोष पा सकता है, जबकि एक उद्योगपति चिंता और तनाव में घिरा रह सकता है।

निरंतर प्रयास और नई संभावनाएँ
कभी-कभी हम किसी एक लक्ष्य पर इतने केंद्रित हो जाते हैं कि अन्य संभावनाओं को देख ही नहीं पाते। इसलिए प्रयास करते रहना चाहिए, लेकिन यह जरूरी नहीं कि सफलता उसी क्षेत्र में मिले जिसकी हमने कल्पना की हो। उदाहरण के लिए, सिविल सेवा की तैयारी कर रहा कोई छात्र इतिहास या भूगोल में गहरी रुचि विकसित कर एक सफल शिक्षक या लेखक बन सकता है।

निष्कर्ष
सफलता के लिए परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है। फिर भी, इसे इस प्रकार कहना अधिक उचित होगा —

“अतः यह कहा जा सकता है कि सकारात्मक दृष्टिकोण और योग्यता के साथ सुनियोजित रणनीति बनाकर कठिन परिश्रम करने से सफलता की संभावना सबसे अधिक होती है।”





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